chakrasan

Types of asan yoga in Hindi good Advantage for know yogasan name, Lesson 2

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Types of Asan

Yogasan Name (Bhujangasan) भुजंगासन

Types of Asan
Bhujangasan

सबसे सरल आसन को करने का तरीका देखें !

Yogasan Name, Bhujangasan:- इस आसन में सिर तथा नाभि को उसी प्रकार से ऊपर उठाना पड़ता है जिस प्रकार भुजंग अर्थात सर्प अपना फन फैलाते हुये अपना सीना ऊपर उठाता है! इस आसन को इसी लिए भुजंग या सर्प आसन कहा जाता है –

Types of asan ( Procedure- करने कि विधि )

  • पहले जमीन पर पेट के बल लेट जाये !
  • फिर दोनों हाथों को कंधो कि सिध में छाती के अगल बगल जमीन प्र इस तरह रखे कि हथेलिया जमीन को स्पर्स करें और उंगलिया आपस में मिली रहे !
  • इस प्रकार करते हुये नाभि के ऊपर के भाग को ऊपर को इस प्रकार उठाते है कि पैरो कि उंगलियों से लेकर नाभि तक का भाग जमीन के साथ लगा रहे !
  • अब रीड कि हड्डी को पीछे किओर जितना झुका सके झुकाए परन्तु यह धयान रहे कि दोनों हाथ कंधे से बहार की ओर न हो और नहीं अन्दर की ओर, बिलकुल सीधे रहें !
  • द्रष्टि ऊपर आकाश की तरफ रहे, छाती तथा सिर को ऊपर उठाते हुये हाथों का केबल सहारा लिया जाये, उनपर शरीर का भार न पड़े !

Benefit लाभ-

इस आसन से पेट के सभी विकार कब्ज, अपच, वायु गोला, पेट दर्द, आदि दूर होते है ! और मेरुदंड लचीला तथा स्वस्थ रहता है !

Yogasan Name ( Mayurasan ) मयूरासन

Mayurasana
Mayurasan

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Types of asan ( Procedure- करने कि विधि )

Mayurasan :- घुटनों के बल जमीन पर बैठ कर, एडी को निचे रखे ! हथेलियों को जमीन पर रखकर अपनी दोनों कुहनियो को नाभि के निचे लाये और समस्त शरीर को धीरे-धीरे हाथों पर उठाये ! सिर, कमर, जांघ, पिंडली व पंझा एक सिध में रखने की कोशिश करें ! आसन लगाते समय श्वास भर लें ! और धीरे-धीरे पूर्वावस्था में आए !

Benefit लाभ :-

इस आसन से कम समय में अत्यधिक व्यायाम होता है ! इसको करने से मधुमेह, बवासीर, व पेट आदि के रोग दूर होते है ! जिन व्यक्ति के गुर्दे में पथरी हो, उन्हें इस आसन का अभ्यास करना चाहिए ! यह पाचन शक्ति की वृधि में सहायक है !

Yogasan Name ( Chakrasan ) चक्रासन

chakrasana 1
Chakrasan

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Chakrasan :- चक्रासन यह आसन चक्र की आक्रति बनता है, अतः इसे चक्रासन कहा जाता है !

Types of asan ( Procedure- करने कि विधि )

इसमें पीठ के बल लोटकर, दोनों पैरो को घुटनों से पोड कर नितम्बो के साथ लगाकर जमीन पर रखे ! फिर दोनों हथेलियों को दोनों कंधो के निचे स्थित करके जितना हो सके शरीर को ऊपर उठाये ! शुरू में साधक के हाथों व पैरो का फासला अधिक होता है, धीरे-धीरे अभ्यास होने पर शरीर में लचीलापन आने पर यह फासला कम हो जाता हैं !

Benefit लाभ :-

इस आसन के अभ्यास से सारा शरीर रवर के सामान बन जाता है, मेरुदंड भी लचीला होता है, इससे व्यक्ति का सौंदर्य भी बढ़ता है ! नाभिमंडल (धरण) को स्थिर रखने में यह आसन सहायक है ! इसके अभ्यास से पाचनतंत्र ठीक रहता है, जिससे रक्त संचार का संतुलन बना रहता है व पेट के सभी रोग दूर रहते है !

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